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हीरों का हार


एक रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई। उसके गले में एक हीरों का हार था, जिसे उतार कर वहीं आले पर रख दिया और बाल संवारने लगी। इतने में एक कौवा आया। उसने देखा कि कोई चमकीली चीज है, तो उसे लेकर उड़ गया। एक पेड़ पर बैठ कर उसे खाने की कोशिश की, पर खा न सका। कठोर हीरों पर मारते-मारते चोंच दुखने लगी। अंतत: हार को उसी पेड़ पर लटकता छोड़ कर वह उड़ गया।
जब रानी के बाल सूख गए तो उसका ध्यान अपने हार पर गया, पर वह तो वहां था ही नहीं। इधर-उधर ढूंढा, परन्तु हार गायब। रोती-धोती वह राजा के पास पहुंची, बोली कि हार चोरी हो गई है, उसका पता लगाइए। राजा ने कहा, चिंता क्यों करती हो, दूसरा बनवा देंगे। लेकिन रानी मानी नहीं, उसे उसी हार की रट थी। कहने लगी, नहीं मुझे तो वही हार चाहिए। अब सब ढूंढने लगे, पर किसी को हार मिले ही नहीं।
राजा ने कोतवाल को कहा, मुझ को वह गायब हुआ हार लाकर दो। कोतवाल बड़ा परेशान, कहां मिलेगा? सिपाही, प्रजा, कोतवाल- सब खोजने में लग गए। राजा ने ऐलान किया, जो कोई हार लाकर मुझे देगा, उसको मैं आधा राज्य पुरस्कार में दे दूंगा। अब तो होड़ लग गई प्रजा में। सभी लोग हार ढूंढने लगे आधा राज्य पाने के लालच में। तो ढूंढते-ढूंढते अचानक वह हार किसी को एक गंदे नाले में दिखा। हार तो दिखाई दे रहा था, पर उसमें से बदबू आ रही थी। पानी काला था। परन्तु एक सिपाही कूदा। इधर-उधर बहुत हाथ मारा, पर कुछ नहीं मिला। पता नहीं कहां गायब हो गया। फिर कोतवाल ने देखा, तो वह भी कूद गया। दो को कूदते देखा तो कुछ उत्साही प्रजाजन भी कूद गए। फिर मंत्री कूदा।
तो इस तरह उस नाले में भीड़ लग गई। लोग आते रहे और अपने कपडे़ निकाल-निकाल कर कूदते रहे। लेकिन हार मिला किसी को नहीं- कोई भी कूदता, तो वह गायब हो जाता। जब कुछ नहीं मिलता, तो वह निकल कर दूसरी तरफ खड़ा हो जाता। सारे शरीर पर बदबूदार गंदगी, भीगे हुए खडे़ हैं। दूसरी ओर दूसरा तमाशा, बडे़-बडे़ जाने-माने ज्ञानी, मंत्री सब में होड़ लगी है, मैं जाऊंगा पहले, नहीं मैं तेरा सुपीरियर हूं, मैं जाऊंगा पहले हार लाने के लिए।
इतने में राजा को खबर लगी। उसने सोचा, क्यों न मैं ही कूद जाऊं उसमें? आधे राज्य से हाथ तो नहीं धोना पडे़गा। तो राजा भी कूद गया। इतने में एक संत गुजरे उधर से। उन्होंने देखा तो हंसने लगे, यह क्या तमाशा है? राजा, प्रजा, मंत्री, सिपाही -सब कीचड़ में लथपथ, क्यों कूद रहे हो इसमें?
लोगों ने कहा, महाराज! बात यह है कि रानी का हार चोरी हो गई है। वहां नाले में दिखाई दे रहा है। लेकिन जैसे ही लोग कूदते हैं तो वह गायब हो जाता है। किसी के हाथ नहीं आता।
संत हंसने लगे, भाई! किसी ने ऊपर भी देखा? ऊपर देखो, वह टहनी पर लटका हुआ है। नीचे जो तुम देख रहे हो, वह तो उसकी परछाई है।
इस कहानी का क्या मतलब हुआ? जिस चीज की हम को जरूरत है, जिस परमात्मा को हम पाना चाहते हैं, जिसके लिए हमारा हृदय व्याकुल होता है -वह सुख शांति और आनन्द रूपी हार क्षणिक सुखों के रूप में परछाई की तरह दिखाई देता है और यह महसूस होता है कि इस को हम पूरा कर लेंगे। अगर हमारी यह इच्छा पूरी हो जाएगी तो हमें शांति मिल जाएगी, हम सुखी हो जाएंगे। परन्तु जब हम उसमें कूदते हैं, तो वह सुख और शांति प्राप्त नहीं हो पाती।
इसलिए सभी संत-महात्मा हमें यही संदेश देते हैं कि वह शांति, सुख और आनन्द रूपी हीरों का हार, जिसे हम संसार में परछाई की तरह पाने की कोशिश कर रहे हैं, वह हमारे अंदर ही मिलेगा, बाहर नहीं।

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दो नगीने

किसी शहर में एक रब्बाई (यहूदी पुजारी) अपनी गुणवती पत्नी और दो प्यारे बच्चों के साथ रहता था. एक बार उसे किसी काम से बहुत दिनों के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा. जब वह दूर था तब एक त्रासद दुर्घटना में उसके दोनों पुत्र मारे गये.
ऐसी दुःख की घड़ी में रब्बाई की पत्नी ने खुद को बड़ी मुश्किल से संभाला. वह बहुत हिम्मती थी और ईश्वर में उसकी आस्था अटूट थी. लेकिन उसे यह चिंता थी कि रब्बाई के लौटने पर वह उसे यह दुखद समाचार किस प्रकार देगी. रब्बाई स्वयं बहुत आस्थावान व्यक्ति था लेकिन वह दिल का मरीज़ था और पूर्व में अस्पताल में भी भर्ती रह चुका था. पत्नी को यह आशंका थी कि वह यह सदमा नहीं झेल पायेगा.
पति के आगमन की पूर्व संध्या को उसने दृढ़तापूर्वक प्रार्थना की और शायद उसे अपनी समस्या का कोई समाधान मिल गया.
अगली सुबह रब्बाई घर पहुँच गया. बड़े दिनों के बाद घर वापसी पर वह पत्नी से गर्मजोशी से मिला और लड़कों के बारे में पूछा.
पत्नी ने कहा, "उनकी चिंता मत कीजिये. आप नहा-धोकर आराम करिए".
कुछ समय के बाद वे भोजन करने के लिए बैठे. पत्नी ने उससे यात्रा के बारे में पूछा. रब्बाई ने उसे इस बीच घटी बातों की जानकारी दी और कहा कि ईश्वर की दया से सब ठीक हुआ. फिर उसने बच्चों के बारे में पूछा.
पत्नी कुछ असहज तो थी ही, फिर भी उसने कहा, "उनके बारे में सोचकर परेशान मत होइए. हम उनकी बात बाद में करेंगे. मैं इस वक़्त किसी और उलझन में हूँ, आप मुझे उसका उपाय बताइए".
रब्बाई समझ रहा था कि कोई-न-कोई बात ज़रूर थी. उसने पूछा, "क्या हुआ? कोई बात तो है जो तुम्हें भीतर-ही-भीतर खाए जा रही है. मुझे बेखटके सब कुछ सच-सच बता दो और हम साथ बैठकर ईश्वर की मदद से उसका हल ज़रूर निकाल लेंगे".
पत्नी ने कहा, "आप जब बाहर थे तब हमारे एक मित्र ने मुझे दो बेशकीमती नगीने अहतियात से सहेजकर रखने के लिए दिए. वे वाकई बहुत कीमती और नायाब नगीने हैं! मैंने उन जैसी अनूठी चीज़ और कहीं नहीं देखी है. अब वह उन्हें लेने के लिए आनेवाला है और मैं उन्हें लौटाना नहीं चाहती. मैं चाहती हूँ कि वे हमेशा मेरे पास ही रहें. अब आप क्या कहेंगे?"
"तुम कैसी बातें कर रही हो? ऐसी तो तुम नहीं थीं? तुममें यह संसारिकता कहाँ से आ गयी?", रब्बाई ने आश्चर्य से कहा.
"सच यही है कि मैं उन्हें अपने से दूर होते नहीं देखना चाहती. अगर मैं उन्हें अपने ही पास रख सकूं तो इसमें क्या बुरा है?", पत्नी ने कहा.
रब्बाई बोला, "जो हमारा है ही नहीं उसके खोने का दुःख कैसा? उन्हें अपने पास रख लेना तो उन्हें चुराना ही कहलायेगा न? हम उन्हें लौटा देंगे और मैं यह कोशिश करूंगा कि तुम्हें उनसे बिछुड़ने का अफ़सोस नहीं सताए. हम आज ही यह काम करेंगे, एक साथ".
"ठीक है. जैसा आप चाहें. हम वह संपदा लौटा देंगे. और सच यह है कि हमने वह लौटा ही दी है. हमारे बच्चे ही वे बेशकीमती नगीने थे. ईश्वर ने उन्हें सहेजने के लिए हमारे सुपुर्द किया था और आपकी गैरहाजिरी में उसने उन्हें हमसे वापस ले लिया. वे जा चुके हैं...".
रब्बाई ने अपनी पत्नी को भींच लिया और वे दोनों अपनी आंसुओं की धारा में भीगते रहे. रब्बाई को अपनी पत्नी की कहानी के मर्म का बोध हो गया था. उस दिन के बाद वे साथ-साथ उस दुःख से उबरने का प्रयास करने लगे.

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1 comments:

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smart tricks
admin
29 April 2020 at 05:03 ×

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Congrats bro smart tricks you got PERTAMAX...! hehehehe...
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